अजीब सी बस्ती में ठिकाना है
मेरा जहाँ लोग मिलते कम,
झांकते ज़्यादा है…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
अजीब सी बस्ती में ठिकाना है
मेरा जहाँ लोग मिलते कम,
झांकते ज़्यादा है…
फासलें इस कदर हैं आज रिश्तों में,
जैसे कोई घर खरीदा हो किश्तों में
वक्त अच्छा था तो हमारी गलती मजाक लगती थी
वक्त बुरा है तो हमारा मजाक भी गलती लगती है..
सुना था वफा मिला करती हैं मोहब्बत में….
हमारी बारी आई तो रिवाज़ ही बदल गए …
दिल बेजुबान है तो क्या,
तुम यूँ ही तोड़ते रहोगे..?!
बस इतनी सी बात समंदर को खल गईं,
एक कागज़ की नाव मुझ पर कैसे चल गई!
वक्त जरूर लगा पर मैं सम्भल गया क्योंकि।
मैं ठोकरों से गिरा था किसी के नज़रों से नहीं।।
उंगली मेरी वफ़ा पे ना उठाना लोगों,
…
जिसे शक हो वो एक बार निभा कर देखे ।
Dil bada rkhe
duniya to waise bhi
bahut chhoti hai……
जिस दिन अपने कमाए हुए पैसों से जीना सीख जायोगे ,
उस दिन आपके शौक अपने आप कम हो जायेंगे..!!