इस शहर में

इस शहर में जीने के अंदाज़ निराले हैं
होठों पे लतीफ़े हैं आवाज़ में छाले हैं|

मनाने की कोशिश

मनाने की कोशिश तो बहुत की हमनें…पर जब वो हमारे लफ़्ज ना समझ सके.. तो हमारी खामोशियों को क्या समझेंगे|

ताल्लुक़ कौन रखता है

ताल्लुक़ कौन रखता है
किसी नाकाम से…!

लेकिन, मिले जो कामयाबी
सारे रिश्ते बोल पड़ते हैं…!

मेरी खूबी पे रहते हैं यहां,
अहल-ए-ज़बां ख़ामोश…!

मेरे ऐबों पे चर्चा हो तो,
गूंगे बोल पड़ते हैं…!!