एक ज़रा सी

एक ज़रा सी जोत के बल पर अंधियारों से बैर
पागल दिए हवाओं जैसी बातें करते हैं

बहुत जलील था

बहुत जलील था वो दिन भी, मेरे लिए….

उधर

मोहब्बत किसी और की होने जा
रही थी…..
इधर लोग कह रहे थे.
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भाई एक “पूड़ी” और देना अच्छी नरम वाली।।।