सुन कर ग़ज़ल मेरी,
वो अंदाज़ बदल कर बोले,
कोई छीनो कलम इससे,
ये तो जान ले रहा है..
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
सुन कर ग़ज़ल मेरी,
वो अंदाज़ बदल कर बोले,
कोई छीनो कलम इससे,
ये तो जान ले रहा है..
ज़िंदगी तो किसी और
की बक्शी हुई अमानत है…..
हम तो बस सांसों की रस्म
अदा करते हैं….
लत लग गयी है मुझें तो, अब तुम्हारे साथ की..
पर गुनहगार किसको कहूँ, खुद को या तेरी अदाओं को।….
वो खुद ही ना छुपा शके अपने चेहरे को नकाब मेँ…..,
बेवजह हमारी आँखो पे इल्जाम लगा दिया….!!!
एक नींद है जो रात भर नहीं आती
और एक नसीब है जो न जाने कब से सो रहा..
हमारे बिन अधूरे तुम रहोगे
कभी था कोई मेरा, तुम खुद कहोगे
न होगें हम तो ये आलम भी न होगा
मिलेगें बहुत से पर कोई हम-सा न होगा.
तुम जिंदगी का वो हिस्सा हो
जो कभी भर नहीं सकता
क्या लिखू जिंदगी के बारे में..वो लोग ही बिछड़ गए जो जिंदगी हुवा करते थे
बस्ता बचपन और कागज़ छीन कर
तुमने बच्चों की हथेली बेच दी
गाँव में दिखने लगा बाज़ारपन
प्यार सी वो गुड़ की भेली बेच दी
जब जब ये चेहरा..!
उदास हुआ।
झुर्रियों ने पूछा…?
मौत के कितने पास हुआ