बेवफा कहने से पहले मेरी रग रग का खून निचोड़ लेना..
कतरे कतरे से वफ़ा ना मिले तो बेशक मुझे छोड़देना….!!
Tag: प्रेरणास्पद कविता
ये इश्क का सौदा
“सस्ता” ना समझ, ये इश्क का सौदा,
तेरी “हँसी” के बदले पूरी “ज़िंदगी” दे रहा
हूँ..!!
ज़िन्दगी बदलने के लिए
ज़िन्दगी बदलने के लिए लड़ना पड़ता है आसान करने के लिए समझना पड़ता है.
बहुत देता है तू उसकी
बहुत देता है तू उसकी गवाहियाँ और उसकी सफाईयाँ,
समझ नहीं आता तू मेरा दिल है या उसका वकील.
अब कौन खरीदेगा
अब कौन खरीदेगा तुम्हारे
ये आसू हीरे के दाम से ,
वो जो दर्द का सौदागर था
अब मोहब्बत छोड दी है उसने !!!!!
मन्दिर तीरथ भटक
मन्दिर तीरथ भटक-भटक कर वृद्ध हो गये छैल।
?चरण पादुका घिस गई घिसा न मन का मैल।
यूँ तो मझे झूठ
यूँ तो मझे झूठ से सख्त नफरत है
लेकिन
अच्छा लगता है
जब वो मुझे अपना कहता है
गिरती हुई बारिश
गिरती हुई बारिश के बूंदों को अपने हाथों से समेट लो,
जितना पानी तुम समेट पाए, उतना याद तुम हमें करते हो,
जितना पानी तुम समेट ना पाई, उतना याद हम तुम्हे करते हैं।
परेशान देखता हूँ आजकल
देखता हूँ आजकल
चहेरे -चहेरे पर मैं एक , थकान देखता हूँ आजकल ,
जिसको देखो उसको, परेशान देखता हूँ आजकल ।।
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परिंदों को नोचते हुये,आसमान देखता हूँ आजकल ,
कश्तियों से लड़ते हुये , तूफान देखता हूँ आजकल ।।
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सरहद के इस पार , उस पार , जब से तनाव बढ़ा ,
चूड़ी,कँगन सब जेवर, परेशान देखता हूँ आजकल ।।
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बू जिनके लिबास से गई नहीं मज़लुमो के खून की,
उन्ही के हाथो में गीता – कुरान देखता हूँ आजकल ।।
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मुफलिस के चूल्हो की,राख भी भूख से बिलखती है
पिर को चद्दर,पत्थरों में भगवान् देखता हूँ आजकल ।।
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खाकी , खद्दर और ये सियासते इतनी गन्दी हो गई
मंदिर मस्जिद को , लहू – लुहान देखता हूँ आजकल ।।
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ख़ौफ़ कोई छिप के बैठा है , ज़रूर बेटी के दिल में, मैं
आईने में अक्सर एक , हैवान देखता हूँ आजकल ।।
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जवान बेटी के माथे पे ,रोज – रोज शिकन देख कर
फ़िक्र में डूबा हुआ , रोज मकान देखता हूँ आजकल ।।
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अँधे देखने,बहरे सुनने लगे,जो थे गूँगे चिल्लाने लगे
आदालतों में रोज बिकाऊ,ईमान देखता हूँ आजकल ।।
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कारखानो का धुँआ दिलासे दे दे कर पास बुलाता है
मुफलिसी के घर का बच्चा,जवान देखता हूँ आजकल ।।
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कहीं पत्थर तोड़ता है , कही बर्तन धोता है , बचपन,
नन्हे-नन्हे हाथो में,कायदे परेशान देखता हूँ आजकल ।।
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हौसले देख कर मुझ को अब ,और आजमाने लगी है
ज़िन्दगी के रोज नये ,मैं इम्तेहान देखता हूँ आजकल ।।
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तन्हा था कल तक “पुरव” तमाम रिश्तों की भीड़ में,
सोहरत आते ही घर रोज मेहमान देखता हूँ आजकल ।।
यूँ तो शिकायतें
यूँ तो शिकायतें तुझसे सैंकड़ों हैं मगर,
तेरी एक मुस्कान ही काफी है सुलह के लिये…