सुन कर ग़ज़ल

सुन कर ग़ज़ल मेरी,
वो अंदाज़ बदल कर बोले,

कोई छीनो कलम इससे,
ये तो जान ले रहा है..

लत लग गयी है

लत लग गयी है मुझें तो, अब तुम्हारे साथ की..

पर गुनहगार किसको कहूँ, खुद को या तेरी अदाओं को।….

वो खुद ही ना

वो खुद ही ना छुपा शके अपने चेहरे को नकाब मेँ…..,
बेवजह हमारी आँखो पे इल्जाम लगा दिया….!!!

हमारे बिन अधूरे

हमारे बिन अधूरे तुम रहोगे
कभी था कोई मेरा, तुम खुद कहोगे
न होगें हम तो ये आलम भी न होगा
मिलेगें बहुत से पर कोई हम-सा न होगा.