किन लफ्जों में बयां करुं खूबसूरती तुम्हारी ,
नूर का झरना भी तुम और इश्क़ का दरिया भी तुम हो…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
किन लफ्जों में बयां करुं खूबसूरती तुम्हारी ,
नूर का झरना भी तुम और इश्क़ का दरिया भी तुम हो…
वो बोलते रहे हम सुनते रहे,
जवाब आँखों में था वो जुबान में ढूंढते रहे !!
थोड़ी सी खुद्दारी भी लाज़मी थी,
उसने हाथ छुड़ाया मैंने छोड़ दिया|
बेनाम आरजू की वजह ना पूछिये,
कोई अजनबी था रूह का दर्द बन गया…
हर बार वो क्यों मुझे छोड़ जाता है तन्हा,
मैं मज़बूत तो बहुत हूँ मगर कोई पत्थर तो नहीं…
मैं वो दरिया हूँ के हर मौज भंवर है जिसकी,
तुमने अच्छा किया मुझसे किनारा करके…
अजीब रंग का मौसम चला है कुछ दिन से;
नज़र पे बोझ है और दिल खफा है कुछ दिन से…
वो और थे जिसे तू जानता था बरसों से…
मैं और हूँ जिसे तू मिल रहा है कुछ दिन से…
जनाजे लौट के आते तो सूकून मिलती उन्हें।
जाबांज जीत के आये तो सुबुत मागते हैं।।
जाते जाते उसने पलटकर सिर्फ इतना कहा मुझसे,
मेरी बेवफायी से ही मर जाओगे या मार के जाऊ!!
चाँद का हुस्न भी ज़मीन से है,चाँद पर चाँदनी नहीं होती।