तुम मेरा नाम

शर्म, दहशत, झिझक, परेशानी, नाज़ से काम क्यूँ नही लेती…

आप, वो, जी, मगर…ये सब क्या है, तुम मेरा नाम क्यूँ नही लेतीं ।

अमन की आस लिए

अमन की आस लिए कुछ फनकार उसपार से इसपार आना चाहते थे

पर कुछ जालिम हे जो
अमन को आतंक समज ते थे

कितने कमज़ोर है

कितने कमज़ोर है यह गुब्बारे, चंद सासों में फूल जाते है,
बस ज़रा सी बुलंदिया पाकर, अपनी औकात भूल जाते है…