कभी नूर-ओ-रँग

कभी नूर-ओ-रँग भरे चेहरे से
इन घनी जुल्फोँ का पर्दा हटाओ,जरा हम भी तो देखेँ,
आखिर
चाँद होता कैसा है….!!!

हो गई थी

हो गई थी कुछ इस कदर करीब तू मेरे,

के अब इन फासलों में भी तेरी खुशबु आती है..!!