अभी अभी जो जुदाई की शाम आई थी हमें अजीब लगा ज़िन्दगी का ढल जाना|
Tag: व्यंग्य
इतने तो लम्हे भी
इतने तो लम्हे भी नही बिताये मेने तेरे संग.. जितनी रातो की निंद ले गये हो तुम छिन के..
फिर यूँ हुआ कि
फिर यूँ हुआ कि सब्र की उँगली पकड़कर हम..इतना चले कि रास्ते हैरान हो गए..
मेरे लिये ना सही
मेरे लिये ना सही इनके लिये आ जाओ …….. तेरा बेपनाह इन्तजार करती हैं आँखें ….
मुस्कुरा के चल दिये॥
दिल के टुकड़े टुकड़े करके, मुस्कुरा के चल दिये॥
दिल के सच्चे कुछ
दिल के सच्चे कुछ एहसास लिखते है, मामूली शब्दों में ही सही,कुछ खास लिखते हैं|
कहीं और सिर टिका लूँ
कहीं और सिर टिका लूँ तो आराम नहीं आता बेअक्ल दिल भी पहचानता है कन्धा तुम्हारा….
कभी नूर-ओ-रँग
कभी नूर-ओ-रँग भरे चेहरे से इन घनी जुल्फोँ का पर्दा हटाओ,जरा हम भी तो देखेँ, आखिर चाँद होता कैसा है….!!!
छुप जाऊँ मै
हो गई थी
हो गई थी कुछ इस कदर करीब तू मेरे, के अब इन फासलों में भी तेरी खुशबु आती है..!!