ख़ामोश सा शहर और गुफ़्तगू की आरज़ू,
हम किससे करें बात कोई बोलता ही नहीं…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
ख़ामोश सा शहर और गुफ़्तगू की आरज़ू,
हम किससे करें बात कोई बोलता ही नहीं…
जुड़ना सरल है…
पर
जुड़े रहना कठिन….
मैं जब भी अपनी पुरानी स्कूल के पास से गुजरता हूँ
सोचता हूँ मुझे बनाने में खुद टूट सी गयी है….
और जब भी में मेरे बेटे की प्रायवेट स्कूल के पास से गुजरता हूँ
मुझे हमेशा लगता है मुझे तोड़ कर खुद बन गयी |
मै फिर से कर लुँगा
मोहब्बत तुमसे……
एक बात तो बताओ इस बार वफा
कितने दिन तक करोगी?
चलो यादों का लिहाफ़
ओढ़ के सो जाए …
शायद कोई
खूबसूरत ख्वाब
अब भी जिंदा हो …
जो देखने में बहुत ही क़रीब लगता था
उसी के बारे में सोचा तो फासला बहुत निकला|
यह तो नहीं कहता कि इन्साफ ही करो..
झूठी भी तसल्ली हो तो जीता ही रहूँगा..!
भुख लोरी गा गा कर,
.
जमीर को सुलाये रखती हैं…
सिलसिला खत्म क्यों करना जारी रहने दो,
इश्क़ में बाक़ी थोड़ी बहुत उधारी रहने दो…
वफा की बूंद में एक हरारत इश्क की थी…..
मुफलिसी के दिन थे….
हाँ, मुहब्बत बेच दी अपनी….