भरे बाज़ार से

भरे बाज़ार से अक्सर मैं खाली हाथ लौट आता हूँ..
पहले पैसे नहीं हुआ करते थे, अब ख्वाहिशें नहीं रहीं….

कुछ सालों बाद

कुछ सालों बाद ना जाने क्या होगा,
ना जाने कौन दोस्त कहाँ होगा…
फिर मिलना हुआ तो मिलेगे यादों में,
जैसे सूखे हुए गुलाब मिले किताबों में.