क्यूँ मुश्किलों में

चंद लाइने मेरे प्यारे से दोस्तों के नाम:-
“क्यूँ मुश्किलों में साथ देते हैं, “दोस्त”
“क्यूँ गम को बाँट लेते हैं, “दोस्त”
“न रिश्ता खून का न रिवाज से बंधा है।
“फिर भी ज़िन्दगी भर साथ देते हैं, “दोस्त”

साँसों की पतंगें

कटी जाती है साँसों की पतंगें हवा तलवार होती जा रही है,

गले कुछ दोस्त आकर मिल रहे हैं छुरी पर धार होती जा रही है…!!!

टुकड़े टुकड़े होकर

उनकी नफरत भरी नज़रों के तीर तो बस
हमारी जान लेने का बहाना था

दिल हमारा टुकड़े टुकड़े होकर बिखर गया
पूरी महफ़िल बोली वाह ! क्या निशाना था

मुझे मालूम है

मुझे मालूम
है कुछ रास्ते
कभी मंजिल तक नहीं जाते

फिर भी मैं चलता रहता हू
क्यूँ कि उस राह में कुछ
अपनों के घर भी आते है …!!