अपना क्या है

जब से उस ने शहर को छोड़ा हर रस्ता सुनसान हुआ
अपना क्या है सारे शहर का इक जैसा नुक़सान हुआ

जिंदगी पर बस

जिंदगी पर बस इतना ही लिख पाया हूँ मैं….

बहुत मजबूत रिश्ते थे मेरे….
पर बहुत कमजोर लोगों से…..