मेरे अज़ीज़ ही मुझ को ना समझ पाये कभी..
मैंअपना हाल किसी अजनबी से क्या कहता |
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मेरे अज़ीज़ ही मुझ को ना समझ पाये कभी..
मैंअपना हाल किसी अजनबी से क्या कहता |
पहले से कुछ साफ़ नज़र आई दुनिया
जब से हमने आँखों पर पट्टी बांधी|
यकीन कि कशतीयां यु ही नही डुबी मेरी ..
मेने देखा है तुम्हे गैरो का होते हुएँ|
चलो एक काम करते हैं
नफ़रत को बदनाम करते हैं|
जरुरत नहीं थी असलियत में शायद..
कर्ज़दार हुए हम शौक ही शौक में..!!
बड़े सादगी से हाल पूछा उन्होंने हमारा,
हमने वही जो तुमने बन रखा है…
आईना हो जाये मेरा इश्क़, उनके हुस्न का ….
क्या मज़ा हो दर्द,अगर खुद ही दवा लेने लगे…
तराजू मोहब्बत का था
बेवफाई भारी पड गयी|
पूछता हूँ सब से कोई बतलाता नहीं
बेबसी की मौत मरते हैं सुख़न-वर किस लिए|
चंद रातों के ख्वाब,
उम्रभर की नींद माँगते है…!!!