परेशान देखता हूँ आजकल

देखता हूँ आजकल

चहेरे -चहेरे पर मैं एक , थकान देखता हूँ आजकल ,
जिसको देखो उसको, परेशान देखता हूँ आजकल ।।
.
परिंदों को नोचते हुये,आसमान देखता हूँ आजकल ,
कश्तियों से लड़ते हुये , तूफान देखता हूँ आजकल ।।
.
सरहद के इस पार , उस पार , जब से तनाव बढ़ा ,
चूड़ी,कँगन सब जेवर, परेशान देखता हूँ आजकल ।।
.
बू जिनके लिबास से गई नहीं मज़लुमो के खून की,
उन्ही के हाथो में गीता – कुरान देखता हूँ आजकल ।।
.
मुफलिस के चूल्हो की,राख भी भूख से बिलखती है
पिर को चद्दर,पत्थरों में भगवान् देखता हूँ आजकल ।।
.
खाकी , खद्दर और ये सियासते इतनी गन्दी हो गई
मंदिर मस्जिद को , लहू – लुहान देखता हूँ आजकल ।।
.
ख़ौफ़ कोई छिप के बैठा है , ज़रूर बेटी के दिल में, मैं
आईने में अक्सर एक , हैवान देखता हूँ आजकल ।।
.
जवान बेटी के माथे पे ,रोज – रोज शिकन देख कर
फ़िक्र में डूबा हुआ , रोज मकान देखता हूँ आजकल ।।
.
अँधे देखने,बहरे सुनने लगे,जो थे गूँगे चिल्लाने लगे
आदालतों में रोज बिकाऊ,ईमान देखता हूँ आजकल ।।
.
कारखानो का धुँआ दिलासे दे दे कर पास बुलाता है
मुफलिसी के घर का बच्चा,जवान देखता हूँ आजकल ।।
.
कहीं पत्थर तोड़ता है , कही बर्तन धोता है , बचपन,
नन्हे-नन्हे हाथो में,कायदे परेशान देखता हूँ आजकल ।।
.
हौसले देख कर मुझ को अब ,और आजमाने लगी है
ज़िन्दगी के रोज नये ,मैं इम्तेहान देखता हूँ आजकल ।।
.
तन्हा था कल तक “पुरव” तमाम रिश्तों की भीड़ में,
सोहरत आते ही घर रोज मेहमान देखता हूँ आजकल ।।

जिंदगी तो अपने ही तरीके से

जिंदगी तो अपने ही तरीके से चलती है….

औरों के सहारे तो जनाज़े उठा करते हैं।

सुबहे होती है , शाम होती है

उम्र यू ही तमाम होती है ।

कोई रो कर दिल बहलाता है

और

कोई हँस कर दर्द छुपाता है.

क्या करामात है कुदरत की,

ज़िंदा इंसान पानी में डूब जाता है

और मुर्दा तैर के दिखाता है…

तू छोड़ दे कोशिशें..

तू छोड़ दे कोशिशें..
इन्सानों को पहचानने की…!

यहाँ जरुरतों के हिसाब से ..
सब बदलते नकाब हैं…!

अपने गुनाहों

पर सौ पर्दे डालकर.
हर शख़्स कहता है-

” ज़माना बड़ा ख़राब है।”

वो थे पापा

जब मम्मी डाँट रहीं थी तो कोई चुपके से
हँसा रहा था,

वो थे पापा. . .

❤ जब मैं सो रहा था
तब कोई चुपके से
सिर पर हाथ
फिरा रहा था ,

वो थे पापा. . .

❤ जब मैं सुबह उठा
तो कोई बहुत
थक कर भी
काम पर जा रहा था ,

वो थे पापा. . .

❤ खुद कड़ी धूप में
रह कर कोई
मुझे ए.सी. में
सुला रहा था

वो थे पापा. . .

❤ सपने तो मेरे थे
पर उन्हें पूरा करने का
रास्ता कोई और
बताऐ जा रहा था ,

वो थे पापा. . .

❤ मैं तो सिर्फ अपनी
खुशियों में हँसता हूँ,
पर मेरी हँसी
देख कर कोई
अपने गम भुलाऐ
जा रहा था ,

वो थे पापा. . .

❤ फल खाने की
ज्यादा जरूरत तो उन्हें थी,
पर कोई मुझे
सेब खिलाए जा रहा था ,

वो थे पापा. . .

❤ खुश तो मुझे होना चाहिए
कि वो मुझे मिले ,
पर मेरे जन्म लेने की
खुशी कोई और
मनाए जा रहा था ,

वो थे पापा. . .

❤ ये दुनिया पैसों से
चलती है पर कोई
सिर्फ मेरे लिए पैसे
कमाए जा रहा था ,

वो थे पापा. . .

❤ घर में सब अपना प्यार
दिखाते हैं पर कोई
बिना दिखाऐ भी
इतना प्यार किए जा रहा था ,

वो थे पापा. . .

❤ पेड़ तो अपना फल
खा नही सकते इसलिए
हमें देते हैं…
पर कोई अपना पेट
खाली रखकर भी
मेरा पेट भरे जा रहा था ,

वो थे पापा. . .

❤ मैं तो नौकरी के लिए
घर से बाहर जाने पर
दुखी था पर
मुझसे भी अधिक
आंसू कोई और
बहाए जा रहा था ,

वो थे पापा. . .

❤ मैं अपने “बेटा ”
शब्द को सार्थक बना सका
या नही.. पता नहीं…
पर कोई बिना स्वार्थ के अपने “पिता” शब्द को सार्थक बनाए जा रहा था ,

वो थे पापा. . .