कद्र मेरी ना समझी

कद्र मेरी ना समझी खुदगर्ज जमाने ने,
मेरी कीमत को आंका शहर के बुतखाने ने,
कुसूर तेरा न था सब खतायें मेरी थी,
खुद को बर्बाद कर लिया तुम्हे आजमाने में,
जिन जमीनों पर तुमने पैरों के निशान छोडे हैं,
वहीं सजदे किये हैं तेरे इस दिवाने ने,
तेरे दिल के अंजुमन से जब रुख्सत हो गये,
तब कहीं पनाह दी हमें इस मयखाने ने!

गाँव की गलियाँ

गाँव की गलियाँ भी अब सहमी-सहमी रहती होंगी ,
की जिन्हें भी पक्की सड़कों तक पहुँचाया वो मुड़के नहीं आये..!!

कहानी जब भी

कहानी जब भी लिखूंगा अपनी उजड़ी हुई ज़िन्दगी की
सबसे मजबूत किरदार में तेरा ही ज़िक्र होगा..!!