जी में जो आती है कर गुज़रो कहीं ऐसा न हो
कल पशेमाँ हों कि क्यों दिल का कहा माना नहीं.
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
जी में जो आती है कर गुज़रो कहीं ऐसा न हो
कल पशेमाँ हों कि क्यों दिल का कहा माना नहीं.
वक़्त-बेवक़्त तेरी यादो का सैलाब तौबा,
बहा ले जाता है ,सुकूं मेरी तन्हा रातो का|
हम सायादार पेड़ ज़माने के काम आये
जब सूखने लगे तो जलाने के काम आये
तलवार की नयाम कभी फेंकना नहीं
मुमकिन है दुश्मनों को डराने के काम आये
कच्चा समझ के बेच न देना मकान को
शायद कभी ये सर को छुपाने के काम आये।
जीने की लिए जैसे एक मुस्कुराहट ही काफी है
मरने की लिए वैसे ही एक गम की काफी है
कभी कभी एक गम पर एक मुस्कान ही काफी है
उसी तरह अगर मुस्कान अगर गम से पिछड़ जाए
वो गम उसे वहां ले जाता है जहाँ उसे नही जाना चाहिए|
हुआ करता था एक ‘आशीक’……..अब लोग उसे, शराबी कहते है …
क्या करेंगे मुस्कुराहट को ले कर
अब तो बरसो से गम की बरसात में
जीने की आदत सी ही गई है|
मुस्कुराहट लबौं पर यु हीं नहीं आती
उसे भी किसी नज़र का इंतज़ार होता हैं
ना हम रोने में रहे
ना हम हंसने में रहे
कितना हसीन है मेरा वजूद
जिसमे कोई अपना ना रहा
मेरे होंटो पर जो खिलती मुस्कुराहट है,ये दरअसल इक गम छुपाने की साजिश है…
कहानी अजीब है पर यही हकीकत है..
वो बहुत बदल गया है वादे हज़ार करके