हम लबों से

हम लबों से कह ना पाये,
उनसे हाल – ए –दिल कभी,
और वो समझे नही यह
ख़ामोशी क्या चीज है..

मोहब्बत की राह

रहता है मशग़ला जहाँ बस वाह-वाह का
मैं भी हूँ इक फ़कीर उसी ख़ानक़ाह का

मुझसे मिल बग़ैर कहाँ जाइयेगा आप
इक संगे-मील हूँ मैं मोहब्बत की राह का

गुजर रहा था

गुजर रहा था तेरी गली से सोचा उन
खिड़कियों को सलाम कर लूँ…
जो कभी मुझे देख कर खुला करती
थी..

मेरी ज़िन्दगी की

टिकटें लेकर बैठें हैं मेरी ज़िन्दगी की कुछ लोग…….

साहेबान…….

तमाशा भी भरपूर होना चाहिए……
निमा की कलम से………..