रात रोने से

रात रोने से कब घटी साहब

बर्फ़ धागे से कब कटी साहब

सिर्फ़ शायर वही हुए जिनकी

ज़िंदगी से नहीं पटी साहब..

एहतियातन मेरी हिम्मत

इसे

सामान-ए-सफ़र मान, ये जुगनू रख ले,
राह में तीरगी होगी, मेरे

आंसू रख ले,

तू जो चाहे तो तेरा झूठ भी बिक सकता है,
शर्त इतनी

है के सोने का तराजू रख ले,

वो कोई जिस्म नही है जिसे छु भी

सके,
अगर नाम ही रखना है तो खुशबु रख ले,

तुझको अनदेखी

बुलंदी में सफ़र करना है,
एहतियातन मेरी हिम्मत, मेरे बाज़ू रख ले,

मेरी ख्वाइश है के आँगन में दीवार न उठे,
मेरे भाई मेरे हिस्से की

ज़मी तू रख ले….