मुझको मेरे वजूद की हद तक न जानिए ,
बेहद हूँ, बेहिसाब हूँ, बेइन्तहा हूँ मैं …!!
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मुझको मेरे वजूद की हद तक न जानिए ,
बेहद हूँ, बेहिसाब हूँ, बेइन्तहा हूँ मैं …!!
मेरी खामोशी अलामत है मेरे इखलाख की
इसे बेजूबानी ना समझो
वो भी अपने होठो पे इक खास हूनर रखते है
दिल तोड के कह देते है कि आखिर हुआ क्या है…!!
जिन्दगी में मुश्किलें तमाम है,
फिर भी इन होठों पे मुस्कान है,
जीना जब हर हाल में है तो,
फिर मुस्कुराकर जीने में क्या नुकसान है !!
वो भी अपने होठो पे इक खास हूनर रखते है,
दिल तोड के कह देते है कि आखिर हुआ क्या है…!!
कह दो गमो से कहीं और बसेरा करे अब..!!
मेरे आक़ा की विलादत का दिन क़रीब है..!!
रोटी किसी माँ की कभी ठंडी नही होती।
मैने फुटपाथो पर भी,जलते चूल्हे देखे है।
कांच के टुकड़े बनकर बिखर गयी है ज़िन्दगी मेरी…
किसी ने समेटा ही नहीं…
हाथ ज़ख़्मी होने के डर से…
बिछड़ना है तो रूह से निकल जाओ..
रही बात दिल की तो उसे हम देख लेंगे..
मुस्कुराने से शुरू और रुलाने पे खतम…।
ये वो जुल्म हैं जिसे लोग मोहब्बत कहते हैं…