कहने को ही मैं अकेला हूं..
वैसे हम चार है..
एक मैं..मेरी परछाई..
मेरी तन्हाई.. और कुछ एहसास…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कहने को ही मैं अकेला हूं..
वैसे हम चार है..
एक मैं..मेरी परछाई..
मेरी तन्हाई.. और कुछ एहसास…
हैं दफ्न मुझमें मेरी कितनी रौनकें, मत पूँछ मुझसे….!!
उजड़ – उजड़ के जो बसता रहा, वो शहर हूँ मैं…
हमारे पास तो सिर्फ तेरी याद हैं…
जिंदगी तो उसे मुबारक जिसके पास तू हैं !
बांध लूँ हाथों पे, सीने पे सजा लूँ तुमको,
….
जी में आता है, अब तावीज़ बना लूँ तुमको !!!
सांसों के सिलसिले को ना दो ज़िन्दगी का नाम…
जीने के बावजूद भी, मर जाते हैं कुछ लोग !
पहुंच हे हमारी चाँद तक ,
ये तारे भी हमें सलाम किया करते हैं
ये आसमा भी झुक जाता है….
जब हम आपको याद किया करते हैं..!
आज लफ्जों को मैने शाम को पीने पे बुलाया है
बन गयी बात तो ग़ज़ल भी हो सकती है
मेरे लिए
अहसास
मायने रखता है…
रिश्ते का नाम
चलो ,
तुम रख लो
कुछ अधूरा सा कहा है..
तुम पूरा समझ लेना..!
उल्फत की जंजीर से डर लगता हैं,
कुछ अपनी ही तकदीर से डर लगता हैं,
जो जुदा करते हैं, किसी को किसी से,
हाथ की बस उसी लकीर से डर लगता हैं..