मुसकुराहटे झुठी भी हुआ करती है,
देखना नहीं समझना सीखो…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मुसकुराहटे झुठी भी हुआ करती है,
देखना नहीं समझना सीखो…
कभी इतना मत मुस्कुराना की नजर लग जाए
जमाने की हर आँख मेरी तरह मोहब्बत की नही होती….!!!
वो शक्स रोज देखता है डूबते हुये सूरज को
काश हम भी किसी शाम का मंजर होते
मासूमियत का कुछ ऐसा अंदाज़ था मेरे
सनम का,
उसे तस्वीर में भी देखूं तो पलकें झुका लेती थी….
बड़ी बेवफ़ा हो जाती है ग़ालिब ये घड़ी भी सर्दियों में।
पाँच मिनट और सोने की सोचो तो तीस मिनट आगे बढ़ जाती है।।
एक ख़्वाब ने आँखे खोली हैं….
क्या मोड़ आया है कहानी मैं…..
वो भीग रही है बारिश मैं………..
और आग लगी है
पानी मैं……!
झाड़ू, जब तक एक सूत्र में बँधी होती है, तब तक वह “कचरा” साफ करती है।
लेकिन वही झाड़ू जब बिखर जाती है तो खुद कचरा हो जाती है।
माफी चाहता हूँ गुनेहगार हूँ तेरा ऐ दिल,
तुझे उसके हवाले किया जिसे तेरी कदर नहीं
कमियां तो पहले भी थीं मुझमें..
अब जो बहाना ढूंढ रहे हो तो वो अलग बात है.. !!
किसी मासूम बच्चे की तबस्सुम मेँ उतर जाओ,
तो शायद यह समझ पाओ खुदा ऐसा भी होता है…