देखने का नजरिया
सही होना चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे स्कूल की पहली घंटी से
नफरत होती है पर वही घंटी जब दिन की आखरी हो तो सबसे
प्यारी लगती है…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
देखने का नजरिया
सही होना चाहिए, ठीक वैसे ही जैसे स्कूल की पहली घंटी से
नफरत होती है पर वही घंटी जब दिन की आखरी हो तो सबसे
प्यारी लगती है…
चलो माना की हमें
प्यार का इजहार करना नहीं आता,
जज़्बात ना समझ सको इतने
नादान तो तुम भी नहीं.
मुझे तेरे काफ़िले मेँ
चलने का कोई
शौक नहीँ.
मगर तेरे साथ कोई और चले मुझे
अच्छा
नहीँ लगता
खाने पे टूट पड़े सब ,
क्या ख़ास – क्या आम ….
चालीसवा था जिसका,वो भुखमरी से मर
गया …
कोई तो सूद चुकाये,
कोई तो जिम्मा ले…
उस इंकलाब का जो आज तक उधार सा है…
लहू बेच-बेच कर
जिसने परिवार को पाला,
वो भूखा सो गया जब बच्चे कमाने वाले हो
गए…!!
हमने कब माँगा है
तुमसे वफाओं का सिलसिला;
बस दर्द देते रहा करो, मोहब्बत
बढ़ती जायेगी।
लोग मुन्तजिर थे, मुझे टूटता हुआ देखने के,
और एक मैं था, कि ठोकरें खा खा कर पत्थर का हो गया
तुमने भी हमें बस एक दिये की तरह समझा था,
रात गहरी हुई तो जला दिया सुबह हुई तो बुझा दिया..
तुम्हारी शातिर नजरे कत्ल करने में
माहिर हैं,
.
.
.
तो सुन लो. हम भी मर-मर
कर जीने में उस्ताद हो गये है।