मार देँ एक दफ़ा ही,
नशीला सा कुछ खिला के…
क्यूँ जहर देँ रहे हो,
मोहब्बत मिला मिला के…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
मार देँ एक दफ़ा ही,
नशीला सा कुछ खिला के…
क्यूँ जहर देँ रहे हो,
मोहब्बत मिला मिला के…
कभी आंसू, कभी यादें, कभी तन्हाई का आलम, हुनर है इश्क का कि दिखाए क्या-क्या।
क्या खुब जवाब था एक बेटि का
जब उससे पुछा गया की तेरी दुनिया
कहा से शुरू होती है कहा पर खत्म..
बेटि का जवाब था..
मा की कोख से शुरू होकर,
पिता के चरणो से गुजर कर,
पती की खुशी के गलियो से होकर,
बच्चो के सपनो को पुरा करने तक खत्म..
न “माँग” कुछ “जमाने” से
” ये” देकर “फिर” “सुनाते” हैं
“किया” “एहसान” “जो” एक “बार”
वो “लाख” बार “जताते” “हैं”
“है” “जिनके” पास “कुछ” “दौलत”
” समझते” हैं “खुदा” हैं “हम”
“ऐ” “बन्दे” तू “माँग” “अपने””अल्लाह” से
“जहाँ” माँगने “वो” भी “जाते” है..
मैं वो दरिया हूं जिसकी हर बूंद भंवर है
तुमने अच्छा ही किया किनारा करके
मुझे ही नहीं रहा शौक़ -ए मोहब्बत वरना,
तेरे शहर की खिड़कियाँ इशारे अब भी करती हैं…
में तो उसको देखकर एक नज़र में ही फ़ना हो गया,
न जाने रोज उसके आयने का क्या हाल होता होगा।।
“क्या लिखूँ , अपनी जिंदगी के बारे में.
दोस्तों.
वो लोग ही बिछड़ गए.
‘जो जिंदगी हुआ करते थे !!
किसी को पाने के लिए अपनों को छोड़ना
खुदगर्जी होती है मोहब्बत नहीं….
ग़रीबी देख कर घर की , वो बच्चे ज़िद
नही करते
वरना उम्र बच्चो की बड़ी शौकीन
होती है