तू क्या लगायेगी

मेरे बर्दाश्त करने का अंदाजा तू क्या लगायेगी,

तेरी उम्र से कहीं ज्यादा मेरे जिस्म पर जख्मो के निशाँ हैं..

उनका कोई कसूर नहीं

वो छोड़ के गए हमें
न जाने उनकी क्या मजबूरी थी;
खुदा ने कहा इसमें उनका कोई कसूर नहीं ;
ये कहानी तो मैंने लिखी ही अधूरी थी।

मै खुश तो हूँ

कही दर्द की झीले, तो कही लहजे की करवटेँ..
उससे कहना मै खुश तो हूँ, मगर मेरा हर लफ़्ज रोता है..!

जहर भी खरीदेंगे

इस जहां में फिरता है हर कोई ईमानदारी जेबें में रखकर

दोस्तों अब तो जहर भी खरीदेंगे तो अपनी जुवां से चखकर