आज हालात देखकर

बचपन में एक पत्थर तबियत से ऊपर
उछाला था कभी…!
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आज हालात देखकर लगता है
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कहीं वो “ऊपर-वाले” को तो नहीं लग
गया…!!

चल ना सका

पुरक़ैफ बहारें आ ना सकी
पुरलुफ़्त नज़ारे हो ना सके
दौर ए मय रंगी चल ना सका
फ़ितरत के ईशारे हो ना सके
आलम भी वही दिल भी वही
तक़दीर को लेकिन क्या कहिये
हम उनके हैं हम उनके थे
पर वो हमारे हो न सके …..

एक तुम हो

एक तुम हो जिस पर दिल आ गया वरना…
हम खुद गुलाब हैं किसी और फूल की ख्वाहिश
नही करते…