जो उड़ गये परिन्दे उनका अफसोस क्या करुँ…
यहाँ तो पाले हुये भी गैरो की छत पर उतरते है…
Category: Sad Shayri
किताब बदलने की
मैं इतनी छोटी कहानी भी न था,
तुम्हें ही जल्दी थी किताब बदलने की।।
कोशिश में हूँ
कोशिश में हूँ कि कह दूँ सब कुछ इस क़दर,
तेरा नाम भी ले लूँ और तेरा जिक्र भी ना हो…
माफ़ी चाहता हूँ
माफ़ी चाहता हूँ गुनाहगार हूँ तेरा ऐ दिल…!! तुझे उसके हवाले किया जिसे तेरी कदर नहीं…!!
ज़रा सी फैली स्याही है
ज़रा सी फैली स्याही है,ज़रा से बिख़रे हम भी हैं,
काग़ज़ पर थोड़े लफ़्ज़ भी है छुपे हुए कुछ ग़म भी हैं…
जब कभी भी
जब कभी भी ख़वाब में सहरा नज़र आया मुझे।
तिश्नगी का इक नया चेहरा नज़र आया मुझे।।
ग़लत-फ़हमियों में
ग़लत-फ़हमियों में जवानी गुज़ारी
कभी वो न समझे कभी हम न समझे…
परिंदों को तो
परिंदों को तो खैर रोज कहीं से, गिरे हुए दाने जुटाने हैं
पर वो क्यों परेशान हैं, जिनके भरे हुए तहखाने हैं|
पा सकेंगे न उम्र भर
पा सकेंगे न उम्र भर जिसको
जुस्तुजू आज भी उसी की है।
अक्सर ज़माना छोङ देता है
मुसीबत में तो साथ अक्सर ज़माना छोङ देता है,
जो अपना है वो पहले आना जाना छोङ देता है।
हमारी दास्ताने जिन्दगी इक बार जो सुन ले,
तो फिर वो जिन्दगी भर मुस्कराना छोङ देता है।