ज़िंदगी हमारी यूँ

ज़िंदगी हमारी यूँ सितम हो गयी;
ख़ुशी ना जाने कहाँ दफ़न हो गयी;
बहुत लिखी खुदा ने लोगों की मोहब्बत;
जब आयी हमारी बारी तो

स्याही ही ख़त्म हो गयी

आईना देख के

आईना देख के तसल्ली

हुई
कोई तो है इस घर मे
जो जानता है हमे

किसी को न पाने से ज़िंदगी

खत्म नहीं हो जाती,
पर किसी को पा के खो देने के बाद कुछ बाकी

नहीं बचता

बुरे तो न थे

इतने बुरे तो न थे , जितने इलज़ाम लगाये लोगो

ने,कुछ मुक्क़दर बुरे थे , कुछ आग लगाई लोगों ने !

सिर्फ इशारों में

सिर्फ इशारों में होती

मोहोब्बत अगर ..इन अल्फाजों को खूबसूरती कौन देता
बस पत्थर

बन के रह जाता ताजमहल ….अगर इश्क इसे अपनी पहचान ना

देता