बे-वफाई भी
वफ़ा की तरहा की उसने,
ऐसे इंसान से भी करते तो गिला क्या करते ।
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
बे-वफाई भी
वफ़ा की तरहा की उसने,
ऐसे इंसान से भी करते तो गिला क्या करते ।
उम्र आधी हो चली है पर नहीं समझे
ज़िंदगी का मर्म रत्ती
भर नहीं समझे
व्यर्थ हैं सब डिग्रियाँ, यह लोग कहते हैं
प्यार के हमने
अगर अक्षर नहीं समझे
आदमी हो तो समझ ले आदमी का दुख
आदमी का दुख मगर पत्थर नहीं समझे
दिल की बातें सिर्फ़ दिल वाले ही समझेंगे
दिल की बातें कोई सौदागर नहीं समझे
ज़िंदगी पूरी
बिताकर के भी दुनिया में
संत दुनिया को ही अपना घर नहीं समझे!
उडते हुये
परिँदो को कोई कैद नही कर सकता ”
जो अपने होते है वो खुद ही
लौट आते है…
जरूरी नहीं की काम से ही
थकता है इंसान,
फ़िक्र,ख्याल,धोखे और फरेब भी थका देते है..!!
जरुरत तोड़ देती है इन्सान के सारे गरूर को …..
ना होती कोई
मज़बूरी तो हर बंदा खुदा होता ।।
रात को सोते हुए एक बेवज़ह सा ख़याल आया….
सुबह न जाग पाऊँ तो क्या उसे ख़बर मिलेगी
कभी…..!
तन्हाई’ सौ
गुना बेहतर है,
झुठे “वादों” से…!
झुठे “लोगों” से…!!
जो नही है
हमारे पास वो ” ख्वाब ” हैं,
पर जो है हमारे पास वो ” लाजवाब ” हैं…
मेरे वजूद पे
उतरी हैं लफ़्ज़ की सूरत,,
भटक रही थीं ख़लाओं में ये सदाएँ कहीं।।
अधूरी हसरतों का आज भी इलज़ाम है तुम
पर…!!
अगर तुम चाहती तो….. ये मोहब्बत ख़त्म ना होती….!!