कहाँ मांग ली थी

कहाँ मांग ली थी कायनात जो इतनी मुश्किल हुई- ऐ- खुदा..
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सिसकते हुए लफ़्ज़ो में बस एक शख्स ही तो मांगा था…

कुछ कहते खामोशियों से

कुछ कहते खामोशियों से कुछ नजरों से बतियाते है
चन्द गुजरे लम्हे है ये, कुछ रोते कुछ मुस्काते है
बस यही हिसाब है तेरा, कोई आना कोई जाना है
गुजर जानी है जिंदगी , याद रहनी मुलाकाते है।

उसने एक बार….

उसने एक बार….
अपनी बाहो में भर कर अपना कहा था

मुझको उस दिन से आज तक

मैं अपने आप का भी ना हो सका