खुदा की रहमत में

खुदा की रहमत में अर्जियाँ नहीं चलतीं
दिलों के खेल में खुदगर्जियाँ नहीं चलतीं
चल ही पड़े हैं तो ये जान लीजिए हुजुर,
इश्क़ की राह में मनमर्जियाँ नहीं चलतीं।

ना जाने कैसे

ना जाने कैसे इम्तेहान ले रही है जिदगी,
आजकल, मुक्दर, मोहब्बत और दोस्त
तीनो नाराज रहते है|

लिख दू कुछ

लिख दू कुछ ऐसा या कुछ ऐसा काम मैं कर जाउ,
फूट-फूट कर रोऐ दुनिया जिस दिन मैं मर जाउ|