मेरी मोहब्बत में

मेरी मोहब्बत में न थी वो आग जो तुझे जला सके,
और तेरी मोहब्बत में मैं इतना जला की लोग मेरी राख भी ना उठा सके।।

मैं तुझसे अब

मैं तुझसे अब कुछ नहीं मांगता ऐ ख़ुदा,
तेरी देकर छीन लेने की आदत मुझे मंज़ूर नहीं।।

इस जहां में

इस जहां में कब किसी का दर्द अपनाते हैं लोग ,

रुख हवा का देख कर अक्सर बदल जाते हैं लोग|