उसकी मोहब्बत के क़र्ज़ का अब कैसे हिसाब हो
गले लगा कर कहती आप बड़े खराब हो।।
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
उसकी मोहब्बत के क़र्ज़ का अब कैसे हिसाब हो
गले लगा कर कहती आप बड़े खराब हो।।
कहानियाँ लिखने लगा हूँ मैँ अब
शायरियों मेँ अब तुम समाते नहीँ
अभी मौजूद है इस गाँव की मिट्टी में खुद्दारी
अभी बेवा की गैरत से महाजन हार जाता है
चंद जुमले बनकर…काग़ज पर बिखर जाता हूँ मैं…
जिस नज़र से देखिये…वैसा ही नजर आता हूँ मैं..!
हम ना कहते थे वक्त ज़ालिम है,देखलो !
ख़्वाब हो गए तुम भी
चले तो पाँव के नीचे कुचल गई कोई शय,
नशे की झोंक में देखा नहीं कि दुनिया है।।
दफ़न कर देता मैं भी दिल की ख्वाहिशों को,..
काश ख्वाबो का भी कोई कब्रिस्तान होता…
धुंध हो जाते हैं कई सपने,
नींदों के अलाव जहाँ जलते हैं..
मैं इंसानियत में बसता हूँ और,
लोग मुझे मज़हबो में ढूँढते है !!
रातों को चांदनी के भरोसें ना छोड़ना,
सूरज ने जुगनुओं को ख़बरदार कर दिया…
रुक रुक के लोग देख रहे है मेरी तरफ,
तुमने ज़रा सी बात को अखबार कर दिया…