कुछ तुम को भी है अज़ीज़ अपने सभी उसूल,
कुछ हम भी इत्तफाक से ज़िद के मरीज़ है।
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
कुछ तुम को भी है अज़ीज़ अपने सभी उसूल,
कुछ हम भी इत्तफाक से ज़िद के मरीज़ है।
तबाह करके चैन उसे भी कहाँ होगा..
बुझाकर हमे वो खुद भी धुआं धुआं होगा..
घर में मिलेंगे उतने ही छोटे कदों के लोग,
दरवाजे जिस मकान के जितने बुलंद है।
इश्क़ के सारे फ़साने अधूरे ही क्यूँ हैं!
जो मजबूर हुए वही मशहूर क्यूँ हैं!
प्यार करने के लिए, गीत सुनाने के लिए ..
इक ख़ज़ाना है मेरे पास लुटाने के लिए ..
जंग हारी न थी अभी कि
फ़राज़
कर गए दोस्त दरमियाँ से दूर रहना |
आँखों की दहलीज़ पे आके सपना बोला आंसू से…
घर तो आखिर घर होता है…
तुम रह लो या मैं रह लूँ….
हारने वालो का भी अपना रुतबा होता हैं …
मलाल वो करे जो दौड़ में शामिल नही थे. …
अहसान रहा इलज़ाम लगाने वालो का मुझ पर
उठती ऊँगलियो ने जहाँ मे मुझे मशहुर कर दिया |
राख बेशक हूँ मगर मुझ में हरकत है अभी भी..
जिसको जलने की तमन्ना हो..हवा दे मुझको…