शिद्दत ए ग़म

शिद्दत ए ग़म से शर्मिंदा नहीं वफ़ा मेरी

रिश्ते जिनसे गहरे हो,जख्म भी गहरे मिलते है |

रिहाई दे दो

रिहाई दे दो मुझे तुम अपनी यादों की कफस से ,
कि तेरी यादों के कफस में दम घुटता है मेरा !!