सब जान के

शहर का शहर है पत्थर जेसा किस किस का एतबार करू
बे दरदो के आगे कसे मे बेठ के ईजहार करू दूश्मन है सब जान के

महन्दी ना लगाना तुम

उन कसमो को भी तोड देना उन वादो को भी तोड दना जिन राहो पे थे |

हम चले उन राहो को भी छोड देना माफ करना खताए |

मेरी नई महफील सजाना तुम भुल जाना वफाये |

मेरी अपनी दूनीया बसाना तुम जनाजा मेरा उठने से पहले महन्दी ना लगाना तुम |

हमारी जिन्दगी मे

हाथ पकड कर रोक लेते अगर तझ पर जरा भी जोर
होता मेरा ना रोते हम यु तेरे लिये अगर हमारी जिन्दगी
मे तेरे शिवा कोई ओर होता

कामयाबी के लिए

अकेले करना पड़ता हैं सफ़र जहाँ में कामयाबी के लिए..

काफिला और दोस्त,अक्सर कामयाबी के बाद ही बनते हैं..