किस तरह करे

किस तरह करे हम खुद को तेरे प्यार के काबिल….
हम आदत बदलते है तो तुम शर्त बदल देते हो….

कौनसा ज़ख़्म था

कौनसा ज़ख़्म था जो ताज़ा ना था,
इतना गम मिलेगा अंदाज़ा ना था,
आप की झील सी
आँखों का क्या कसूर,
डूबने वाले को ही गहराई का अंदाज़ा ना
था |

लफ़्ज़ों पे वज़न

लफ़्ज़ों पे वज़न रखने से नहीं झुकते मोहब्बत के पलड़े साहिब… हलके से इशारे पे ही ज़िंदगियां क़ुर्बान हो जाती हैं….

दो चार नहीं

दो चार नहीं मुझे सिर्फ एक ही दिखा दो साहब,
वो शख्स जो अन्दर से भी बाहर की तरह दिखता हो