गले मिलने को

गले मिलने को आपस में दुआयें रोज़ आती हैं,
अभी मस्जिद के दरवाज़े पे माएँ रोज़ आती हैं…

पिघली हुई हैं

पिघली हुई हैं, गीली चांदनी,
कच्ची रात का सपना आए

थोड़ी सी जागी, थोड़ी सी सोयी,
नींद में कोई अपना आए

नींद में हल्की खुशबुएँ सी घुलने लगती हैं…