हैं दफ्न मुझमें मेरी कितनी रौनकें, मत पूँछ मुझसे….!!
उजड़ – उजड़ के जो बसता रहा, वो शहर हूँ मैं…
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
हैं दफ्न मुझमें मेरी कितनी रौनकें, मत पूँछ मुझसे….!!
उजड़ – उजड़ के जो बसता रहा, वो शहर हूँ मैं…
ये कैसी नौकरी ता-उम्र की कर ली हमने…
तुम्हारी यादों में इतवार भी नहीं आता….
वक़्त बड़ा धारदार होता है,
कट तो जाता है मगर,
काटने के बाद…..!!
आज लफ्जों को मैने शाम को पीने पे बुलाया है
बन गयी बात तो ग़ज़ल भी हो सकती है
कुछ अधूरा सा कहा है..
तुम पूरा समझ लेना..!
लफ्ज् दिल से निकलते हैं
दिमाग से तो मतलब निकलते है
अपने जलने मे किसी को नही करता शरीक !!
रात होते ही शमा को बुझा देता हूँ मै !!
मोहब्बत से फतैह करो लोगो के दिलो को,
जरुरी तो नही सिकन्दर की तरह तलवार रखी जाये.
हमारे इश्क की तो बस इतनी सी कहानी हैं:
तुम बिछड गए.. हम बिख़र गए..
तुम मिले नहीं.. और हम किसी और के हुए नही
Mohabbat ke kaafile ko kuch der to rok lo
aate hain hum bhi paanv se kaante nikaalkar