कही होकर भी

कही होकर भी नहीं हूँ, कहीं न होकर भी हूँ।

बड़ी कशमकश में हूँ कि कहाँ हूँ और कहाँ नहीं हूँ।

माफ हो गुस्ताखी

गुस्ताखी माफ हो गुस्ताखी ,

क्योंकि हम तुम्हे जिन्दगी कह नही पाते ,

हाँ मगर तुम वो अहसास हो आते ,

जैसे जिन्दगी
तुम्हारे साथ साथ ही हो ,

या जिन्दगी का तुम ही आभास हो !

नज़दीक ही रहता है

नज़दीक ही रहता है वो पर मिलने नही आता..
पुछो तो मुस्करा के कहता है..
तुम से तो मुहोब्बत है..
तुम से क्या मिलना..