बैठ जाता हूँ

बैठ जाता हूँ अब खुले आसमान के नीचे तारो की छाँव मे,,,

अब शौक नही रहा महफिलो मे रंग जमाने का…

अपने दिल से

अपने दिल से मिटा ड़ाली तेरे साथ की सारी तस्वीरें

आने लगी जो ख़ुशबू तेरे ज़िस्मों-जां से किसी और की…!!

ताश के पत्तों में

ताश के पत्तों में दरबदर बदलते चले गए…
इश्क़ में सिमटे तो ऐसे के बिखरते चले गए…

यूँ तो दिल ने बसायी थी एक दुनिया उनके संग…
रहने को जब भी निकले उजड़ते चले गए…

इस मुक़द्दर की

इस मुक़द्दर की सिर्फ़ मुझसे ही अदावत क्यूँ हैं…
गर मुहब्बत है तो मुझे तुझसे ही मुहब्बत क्यूँ है…