इंतज़ार की आरज़ू

इंतज़ार की आरज़ू अब खो गयी है,
खामोशियो की आदत हो गयी है,
न सीकवा रहा न शिकायत किसी से,
अगर है तो एक मोहब्बत,
जो इन तन्हाइयों से हो गई है..!

बरसों पुराना ये खँडर

जिस्म का बरसों पुराना ये खँडर गिर जाएगा,
आँधियों का ज़ोर कहता है शजर गिर जाएगा !

हम तवक़्क़ो से ज़ियादा सख़्त-जाँ साबित हुए,
वो समझता था कि पत्थर से समर गिर जाएगा !

अब मुनासिब है कि तुम काँटों को दामन सौंप दो,
फूल तो ख़ुद ही किसी दिन सूखकर गिर जाएगा !

बड़ी नादान है

बड़ी नादान है इस
निकम्मे दिल की..
हरकतें जो मिल गया
उसकी कदर ही नहीं,
और जो ना मिला उसे
भूलता नहीं