अकेले हम ही

अकेले हम ही शामिल नहीं हैं इस जुर्म में जनाब,
नजरें जब भी मिली थी मुस्कराये तुम भी थे।

फ़क़ीर मिज़ाज़ हूँ

फ़क़ीर मिज़ाज़ हूँ मैं अपना अंदाज़ औरों से जुदा रखता हूँ
लोग मंदिर मस्जिदों में जाते हैं मैं अपने दिल में ख़ुदा रखता हूँ|

अब ना रहा

अब ना रहा तेरा कोई राब्ता मुझसे,
शायद …..इसलिए ……,
मेरी खामोशियां भी है अब बेअसर तुझपे।