तेरी मोहब्बत की तलब थी इस लिए हाथ फैला दिए
वरना हमने तो कभी अपनी ज़िंदगी की दुआ भी नही माँगी।
Category: Love Shayri
कोई जुदा नहीं कर पाएगा
फिर कोई जुदा नहीं कर पाएगा हमें…
अगली बार आऊंगा मैं तेरे मजहब का बनके..
अकेले हम ही
अकेले हम ही शामिल नहीं हैं इस जुर्म में जनाब,
नजरें जब भी मिली थी मुस्कराये तुम भी थे।
फ़क़ीर मिज़ाज़ हूँ
फ़क़ीर मिज़ाज़ हूँ मैं अपना अंदाज़ औरों से जुदा रखता हूँ
लोग मंदिर मस्जिदों में जाते हैं मैं अपने दिल में ख़ुदा रखता हूँ|
आईने में वो
आईने में वो अपनी अदा देख रहे हैं,
मर जाए कि जी जाए कोई उन की बला से !!
तुम सामने बैठे हो
तुम सामने बैठे हो तो है कैफ़ की बारिश,
वो दिन भी थे जब आग बरसती थी घटा से !!
अब ना रहा
अब ना रहा तेरा कोई राब्ता मुझसे,
शायद …..इसलिए ……,
मेरी खामोशियां भी है अब बेअसर तुझपे।
दुनिया भी मिली है
दुनिया भी मिली है ग़म-ए-दुनिया भी मिला है,
वो क्यूँ नहीं मिलता जिसे माँगा था ख़ुदा से !!
फाख्ता की फितरत में
फाख्ता की फितरत में था डालियाँ बदलते रहना,
हम तो बरगद थे फ़राज़ न जाने कितने घोसले समाये हुए|
न जाने कब
न जाने कब खर्च हो गये , पता ही न चला….वो लम्हे, जो छुपाकर रखे थे जीने के लिए…