मेरी आँखों से

मेरी आँखों से बना तेरी आँखों का चेहरा,
गैरो की आँखों से जो देखा नहीं जाता।।
सहानुभूति नहीं, इश्क़ ग्रन्थ हो तुम,
जिसे सरेआम नासमझों के बीच फेंका नहीं जाता।।

न तेरी अदा

न तेरी अदा समझ में आती है ना आदत ऐ ज़िन्दगी,
तू हर रोज़ नयी सी,हम हर-रोज़ वही उलझे से..