गुनहगारों की आँखों में झूठे ग़ुरूर होते हैं,
यहाँ शर्मिन्दा तो सिर्फ़ बेक़सूर होते हैं……
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
गुनहगारों की आँखों में झूठे ग़ुरूर होते हैं,
यहाँ शर्मिन्दा तो सिर्फ़ बेक़सूर होते हैं……
कुछ दिन से ज़िंदगी मुझे पहचानती नहीं…
यूँ देखती है जैसे मुझे जानती नहीं..
जो हमे समझ ही नहीं सका,
उसे हक है हमें बुरा समझने का…
जो हमको जान लेता है,
वो हम पर जान देता है…
कुछ नाकामयाब रिश्तों में पैसे नहीं..
बहुत सारी उम्मीदें और वक्त खर्च हो जाते हैं|
हम से खेलती रही दुनिया ताश के पत्तो की तरह, जिसने जीता उसने भी फेका जिसने हारा उसने भी फेका..
हसरत है तेरी आँख का आंसू बन जाऊं ..
पर तू रोए.. दिल को ये भी तो गंवारा नहीं|
मेरे बस मे हो तो लहरों को इतना हक भी ना दू,
लिखू नाम तेरा किनारे पे और लहरो को छुने तक ना दू…
मौहब्बत हैं तो फिक्र करते हैं…
नहीं रहेगी तो..जिक्र भी नहीं करेंगे…
बस अब खत्म भी करो खेल इश्क़ का,किस्मत के हारे हुए जीता नहीं करते कभी|
तू ऐसा कर, अपना दर्द मुझे दे-दे….
फिर मैं जानु, दर्द जाने, दुआ जाने, खुदा जाने|