आऊंगा मै इक रोज तेरा दर्द पूछने
ख़ुदा जो दे गर मुझे मेरा दर्द भूलने|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
आऊंगा मै इक रोज तेरा दर्द पूछने
ख़ुदा जो दे गर मुझे मेरा दर्द भूलने|
मैं शीशा हूँ
टूटना मेरी किस्मत है इसलिए पत्थरो से मुझे
कोई शिकायत नहीं होती|
बहुत आसान है पहचान इसकी
अगर दुखता नहीं तो दिल नहीं है|
सोचता हूँ बेच ही डालू अब इसे…
मेरे सब उसूल पुराने हो गए है|
अगर देखनी है कयामत तो चले आओ हमारी महफिल मे
सुना है आज की महफिल मे वो बेनकाब आ रहे हैँ|
उसे मिल गए उसकी बराबरी के लोग
मेरी गरीबी मेरी मोहब्बत की कातिल निकली |
तुम हो मुस्कान लबों की….
बाकी ज़िन्दगी खाली-ख़ाली…!!
न कोई फिकर, न कोई चाह
हम तो बड़े बेपरवाह है
उम्र फकीराना गुजरी है
हम तो ऐसे शहंसाह है|
अपनी चाहत के नाम कर लेना,
कोई उँचा मकाम कर लेना,
अगर किसी मोड़ पर मिलो मुझसे,
एक प्यारा सलाम कर लेना…
जी भर कर देखूँ तुझे ……
अगर गवारा हो ……
बेताब मेरी नजर हो
और चेहरा तुम्हारा हो ……