उम्र भर ..बस उम्र का .. पीछा किया…
काम हमने कौन सा .. सीधा किया ;
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पांव जब .. जमने लगे .. मेरे कहीं
दिल निकल भागा .. ज़हन रोका किया ;
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रोशनी .. अपनी लुटा दी .. हर जगह..
पूछते हो तुम .. कि हमने क्या किया ;
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राह चलते ..जब कहीं .. मौक़ा मिला..
दिल वही ठहरा.. रुका ..जितना किया ;
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जो मिला.. जितना मिला .. हर हाल में…
रोज़ .. उसके दर पे ही …सज़दा किया ;
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हाँ .. नहीं रक्खा अना को .. ताक़ पर..
प्रेम से पर .. सब यहाँ .. जीता किया ;
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ज़ुर्म है गर ये .. तो दो मुझको सज़ा …
मौत से कब .. दिल मिरा दहला किया ;
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प्यास को पी कर … दबा कर भूख को…
रात दिन बस प्यार ही .. ओढ़ा किया ;
एक नदिया सी ‘तरू’ … बहती रही…
कब किसी .. दीवार ने .. रोका किया…!!
Category: Hindi Shayri
है अनोखा यार
है अनोखा यार मेरा ,
न कोई उसके जबाब का
शबनम भी मांगती है, उससे वो चेहरा गुलाब का
क्या गर्दन सुराहीदार है
भरी है मस्ती शराब की
काजल ने चढ़ा रखी है
उसके कमाने शबाब की
तरिका नहीं है बाकी , अब कोई बचाव का
अंगडाई ले के जुल्फें
हैं गीली बिखेर दी
सब राह घेर दी हैं
उसने निकलने की
दिल धक् से रह गया , है आलम तनाव का
वो होंठ गुलाबों से
लगता है बोल उठेंगे
मेरा ही नाम लेंगे
अपना मुझे कहेंगे
धीरे से अब सरका है, लो साया हिजाब का
बन के गुल बहार का
इस चमन में आ गए हैं
जज्बात उम्र “मसीहा”
कुछ और पा गए हैं
लगते हैं भरा जाम, वो नशीली शराब का
फ़ासले इस कदर हैं
फ़ासले इस कदर हैं रिश्तों में,
घर ख़रीदा हो जैसे क़िश्तों में
तेरी जरूरत भी है
अजीब मेरा अकेलापन है…
तेरी चाहत
भी नहीं..और
तेरी जरूरत भी है …!!!
दिलनशी दुनिया के
दिलनशी दुनिया के नक्शों को ना होने दीजिए
इस गुलिश्ता से गुजर जाईए, दरिया होकर!!!!
कभी नही बुझते
कभी जलाओ तो सही दुआओं से।
दिये कभी नही बुझते फिर हवाओं से।
अब कहाँ जरुरत है
अब कहाँ जरुरत है हाथों मे पत्थर उठाने की,
तोडने वाले तो जुबान से ही दिल तोड़ देते हैं…..
कितनी ही शिद्दत से
कितनी ही शिद्दत से निभा लो तुम रिश्ता,
बदलने वाले बदल ही जाते हैं…!!!
जरूरत भर खुदा
जरूरत भर खुदा सबको देता है।
परेशां है लोग इस वास्ते कि, बेपनाह मिले।
गुनगुनाता जा रहा था
गुनगुनाता जा रहा था इक फक़ीर
धूप रहती है न छाया देर तक