जिसे अपना चाँद

मैं जिसे अपना चाँद समझता था…
उसने मोहल्ले के आधे से ज्यादा लड़के अंतरिक्ष यात्री बना रखे थे।

लेकर आना उसे

लेकर आना उसे मेरे जनाजे में,
एक आखरी हसीन मुलाकात होगी..!

मेरे जिस्म में जान न हो मगर,
मेरी जान तो मेरे जिस्म के पास होगी..!!

ख़्वाब की तरह

ख़्वाब की तरह बिखर जाने को जी चाहता है
ऐसी तन्हाई के मर जाने को जी चाहता है

घर की वहशत से लरज़ता हूँ मगर जाने क्यूँ
शाम होती है तो घर जाने को जी चाहता है

डूब जाऊँ तो कोई मौज निशाँ तक न बताए
ऐसी नद्दी में उतर जाने को जी चाहता है

कभी मिल जाए तो रस्ते की थकन जाग पड़े
ऐसी मंज़िल से गुज़र जाने को जी चाहता है

वही पैमाँ जो कभी जी को ख़ुश आया था बहुत
उसी पैमाँ से मुकर जाने को जी चाहता है”

खुद को इतना

खुद को इतना भी मत बचाया कर
बारिशे हो तो भीग जाया कर

चाँद लाकर कोई नहीं देगा
अपने चेहरे से जगमगाया कर

दर्द हीरा है दर्द मोती है
दर्द आँखों से मत बहाया कर

काम ले कुछ हसीन होंठो से
बातो-बातो मे मुस्कुराया कर

धुप मायूस लौट जाती है
छत पे कपडे सुखाने आया कर

कौन कहता है दिल मिलाने को
कम से कम हाथ तो मिलाया कर