उन घरों में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं
क़द में छोटे हों मगर लोग बड़े रहते हैं|
Dil ke jazbaati lafzon ki ek mehfil ! | दिल के जज्बाती लफ्जो की एक महफ़िल !
उन घरों में जहाँ मिट्टी के घड़े रहते हैं
क़द में छोटे हों मगर लोग बड़े रहते हैं|
तू जिंदगी को बस जी ले,
उसे समझने की कोशिश न कर..
मन में चल रहे युद्ध को विराम दे,
खामख्वाह खुद से लड़ने की कोशिश न कर..
कुछ बाते कुदरत पर छोड़ दे,
सब कुछ खुद सुलझाने की कोशिश न कर..
जो मिल गया उसी में खुश रह,
जो सकून छीन ले वो पाने की कोशिश न कर..
रास्ते की सुंदरता का लुत्फ़ उठा,
मंजिल पर जल्दी पहुचने की कोशिश न कर…
अभी लिखी है गज़ल तो अभी दीजिये दाद़
वो कैसी तारीफ जो मिले मौत के बाद..
जागा हुआ ज़मीर वो आईना है
सोने से पहले रोज़ जिसे देखता हूँ मैं|
अपना मुक़द्दर ग़म से बेग़ाना अगर होता
तो फिर अपने-पराए हमसे पहचाने कहाँ जाते|
मैं अपनी ज़ात में नीलाम हो रहा हूँ ग़म-ए-हयात से कह दो ख़रीद लाये मुझे|
लम्हों मे खता की है
सदियों की सज़ा पाई|
ये भी तो सज़ा है कि गिरफ़्तार-ए-वफ़ा हूँ
क्यूँ लोग मोहब्बत की सज़ा ढूँढ रहे हैं|
है ये बस्ती तिरे भीगे हुए कपड़ों की तरह
तेरे इस्नान-सा लगता है ये बरसात का रंग
हाथ मिलते ही उतर आया मेरे हाथों में
कितना कच्चा है मिरे दोस्त तिरे हाथ का रंग |